Monday 12 September 2011

पछतावा

दोनों के सुन्दर सपने थे ,
दोनों ने उनपर काम किया .
दोनों कर्मठ दोनों सक्षम ,
दोनों ने नहीं आराम किया .

दोनों के उपाय प्रभावी थे,
दोनों ही पूर्ण प्रयासी थे .
दोनों के अपने उसूल थे ,
दोनों ही आत्मविश्वासी थे .



दोनों के तरीके विफल हुए ,
दोनों का सपना टूट गया .
एक ने यह प्रहार सहन किया,
दूजे का साहस छूट गया .

अब यहाँ से दोनों पृथक हुए ,
दोनों ने अलग विचार किया .
इक तो रोने में लगा रहा ,
दूजे ने अलग उपचार किया.

उसने अगला सपना पाला ,
यह पिछली यादों में खोया .
उसने नवीन ईंटें जोड़ी ,
यह पिछले मकान पर रोया .

दोनों पर दुनिया खूब हंसी ,
एक दुखी हुआ , एक भूल गया.
दोनों पे व्यंग्य शर बरसे थे ,
एक झेल गया एक झूल गया .

जो झेल गया जो भूल गया
जो लगा रहा वह पाएगा .
टूटें उसके असंख्य सपने ,
वह पुनः जोड़ता जायेगा .

जो झूल गया जो दुखी हुआ,
जो रोया है पछताया है .
उसका यह सफ़र समाप्त हुआ,
कुछ हाथ न उसके आया है .

यह रोना धोना पछताना ,
सब कमजोरों के बहाने हैं .
एक सपने पर क्या रोना है ,
सपने तो बिखर ही जाने हैं .

फिर फिर टूटें , फिर फिर जोड़ो,
अभ्यास प्रबल हो जायेगा .
फिर कैसा भी सपना टूटे ,
पछतावा कभी न आएगा .

Saturday 10 September 2011

बदलाव


खुद में अंतर देखता हूँ कुछ दिनों से , 
तोलती है आत्मा व्यवहार मेरा , 
हर किसी के संग और फिर तुम्हारे संग,
और आता  गुप्त यह सन्देश मन से , 
या तो दोहरा हो गया व्यवहार मेरा
या ज्यादा खास से कुछ हो गए तुम !

दुसरो को भूल जाता याद करना ,
फ़ोन करना मेल करना या कि मिलना .
दिल पे रहता हर घडी कब्ज़ा तुम्हारा ,
उँगलियाँ डायल करें नंबर दोबारा ,
पासवर्ड भी अब तुम्हारे नाम पर और जन्मदिन पर,
देखकर होता मुझे अचरज कदाचित ,
समझ न आये की मैं बदला हुआ हूँ ,
या अलग अब भीड़ से कुछ हो गए तुम ?

दूसरों की उपेक्षा से क्रोध जनता ,
उपेक्षित हो तुमसे दारुण दुःख पनपता .
कई दिन तक चले उलझन , जब तुड़े नाता किसी से,
तुमसे पल भर की भी उलझन क्यों ये दिल सुलझाना चाहे ?
प्रेम भर यह नहीं केवल , प्रेम तो प्रियजनों से भी .
आत्मीयों से घटा व्यवहार मेरा ,
या कि उनसे कहीं ऊपर चढ़ गए तुम ?

तुम बने अब इक ज़रूरी सी ज़रूरत ,
वायु , जल, भोजन, बसेरे से भी बढ़कर .
याद भर मन कार्य से मेरा हटाती,
तुम हो खुश तो कोई भी चिंता न खाती .
कहो क्या मैं निष्क्रिय अब हो चला हूँ ,
या कि कर्मठता पे भारी पड़ गए तुम ?

कोई बतलाये कि मैं बदला हुआ हूँ ,
या ज्यादा खास से कुछ हो गए तुम ?

Monday 5 September 2011

आगाज़ की उम्मीद

ख्वाबो में है मेरे भी उन आसमानो की बुलंदी,
पर अभी निश्चित नहीं कब उड़ने का आगाज़ होगा.

कई वक्रो , कई मोड़ो बाद शायद सफलता है ,
हर विपद पर मन को समझाता ये अंतिम विफलता है.
रास्तो के बदलते ही शिखर पर हम जा लगेंगे.
पर अभी निश्चित नहीं कब मुड़ने का आगाज़ होगा.

प्रयासो की विफलता ने घाव गहरे कर दिए हैं.
कुछ से थी मरहम की आशा , ग्रहण पर सबने दिए हैं.
सफलता के नीर से ही व्रण ये सारे स्वच्छ होंगे,
पर नहीं यह जानता कब धुलने का आगाज़ होगा.

अवसरो की प्रतीक्षा में, धैर्य का भी धैर्य टूटा ,
परम सद्व्यवहार पर भी नेहियों का नेह रूठा .
सभी रूठों को शुभा देवी तुम्ही अब मनाओगी .
जब उठूंगा धूल से और मेरा भी सम्राज होगा .

है विधी जिद्दी भयंकर , कष्ट देते यह न थकता ,
कोई इसको दे चुनौती , यह तनिक भी सह न सकता .
मगर शायद गलत इसने मुझे स्पर्धी चुना है,
मेरी बेशर्मी का इसको , शायद नहीं अंदाज़ होगा .

ख्वाबो में है मेरे भी उन आसमानों की बुलंदी,
पर अभी निश्चित नहीं कब उड़ने का आगाज़ होगा !



Sunday 4 September 2011

दुःख का साथी

सब खुशियाँ तुम्हें मुबारक हों ,
तुम सारी अकेले खर्च करो , 
हम साथ नहीं , कुछ बात नहीं
हर जगह ज़रूरी साथ नहीं 
पर जब ग़म ज्यादा गहराए , 
तब याद मुझे कर लेना तुम !

रोजाना ही कुछ मिलते हैं,
रोजाना ही गुल खिलते हैं.
वो बहुत निराले लगते हैं,
भले साथ तनिक ही चलते हैं.
जब गुलशन सूना हो जाये,
गुल और कहीं जब  मुस्काए,
तन्हाई जब तुमको खाए ,
तब याद मुझे कर लेना तुम !!

जब गरज़ पड़ी तब याद किया,
हमने हरदम ही साथ दिया,
तुमने भी शुक्रिया नज़र किया,
पर लम्हे में बेशुकर किया.
हम तुमसे वजह तो तब पूछे ,
जब रूह को हमारी गवारा हो.
हम भी हम हैं , हमें मालूम है ,
तुम ख़ुश आबाद दोबारा हो.

जब वक़्त गुज़र यह जायेगा,
अपना ही जब ठुकराएगा ,
या मतलब कोई आयेगा,
तब याद तुम्हें आएंगे हम !!!