Monday 9 January 2012

रोना किसलिए ?

तब समय निराला रहता था ,
जीवन मय प्याला रहता था ,
जो पत्थर सम भरी है अब ,
वह मन मतवाला रहता था ,



पर टूट गया जब छूट गया
रक्षक ही निधि जब लूट गया

अब सार नहीं , आधार नहीं ,
यह जीवन अब उपहार नहीं ,
वह मुस्काहट हर बार नहीं ,

और प्यार नहीं , पर रोना क्या ?

निज खुशियों पर हँसना भूले ,
उसकी पीड़ा पर दुखी हुए ,
खुद ज्यों के त्यों संतुष्ट रहे ,
उसके हित अथक प्रयत्न किये
फिर भी तो हाथ से फिसल गया,
मतलब बनते ही निकल गया.


अब जीवन में संगीत नहीं
वह जीत नहीं वह रीत नहीं
मन से प्यारा मनमीत नहीं
और प्रीत नहीं पर रोना क्या ?

होंगे वह और जो रोते हैं,
जो बाकी , वह भी खोते हैं.
फेरते निगाह भविष्यत् से ,
बोझा अतीत का ढोते हैं.

यहाँ थोड़ी अलग कहानी है,
खुशियाँ तो आनी जानी हैं .

माना अब वह सहचार नहीं ,
अभिसार नहीं, आसार नहीं .
पर हृदय को दुःख स्वीकार नहीं ,
कुछ भार नहीं , तब रोना क्या ?

Sunday 1 January 2012

राष्ट्रीय बेशर्मी

नव वर्ष दोबारा आना है , सब स्वागत को तैयार रहें .
डिस्को, भांगड़ा, वोदका, व्हिस्की और कैबरे की भरमार रहे .
खा पीकर सारे टुन्न बनें , उछलें कूदें नाचें गाएं ,
फिर पीकर झगड़ें , गाली दें , खुद पिटें और जूते खाएं .
दुश्मन को पीठ पीछे कोसें , अपनों से सीधा समर रहे ,
यह नीति हमारी अमर रहे , यह प्रीति हमारी अमर रहे.

जो अच्छा पिछले साल हुआ , उसपर उछलें ताली पीटें ,
जो बुरा हुआ उसको भूलें , कहकहा लगा सर को झींटे .
जीवन की विफलता भूल सभी खेलों की सफलता पर झूमें ,
हम शर्म को जूतों तले दबा सर तान के दुनिया में घूमें .
मरने वालों का नाम न लो , मुँह पर जीतों की खबर रहे .
यह गर्व हमारा अमर रहे , यह पर्व हमारा अमर रहे .

नेता सारे यह भाषण दें मरने वाले तो मरते हैं ,
दुश्मन को लगता मार रहे , वो जनसंख्या कम करते हैं .
इसको भी देश की विजय समझ मन में ही वेदना वार सहें ,
अगला हमला जल्दी होगा सब मरने को तैयार रहें .
जो आया उसको जाना है , फिर हमलों की क्यों फिकर रहे ?
धारणा ये अपनी अमर रहे , प्रेरणा ये अपनी अमर रहे .

यह देश राम गौतम का है , यहाँ दुःख में भी खुश रहते हैं ,
जब प्रियजन अपना मरता है , तब भोज करेंगे कहते हैं.
मरने पे भोज सबका करते , हर वर्ष ही श्राद्ध मानाते हैं ,
सब मरें और हमें दान मिले , कुछ सज्जन यह फरमाते हैं.
सबमें बसता है परमात्मा , जर देह आत्मा अजर रहे,
नव प्रण ये हमारा अमर रहे , दर्शन ये हमारा अमर रहे .

जो चले गए वह अमर हुए , उनके पीछे क्या पछताना ?
जो जायेंगे वो अमर होंगे , क्यों सुरक्षा को फिर बढवाना ?
अपनों की लाशें ना देखें , आतंकी लाशों पर नाचें ,
हमने भी उनके मारे हैं , दुनिया भर में गाकर बांचें .
इस वर्ष मित्रता दौरे हों , पानी की तरह फिर बजट बहे ,
सरगर्मी अपनी अमर रहे , बेशर्मी अपनी अमर रहे.

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