Friday 25 November 2011

तुम्हारे जाने के बाद


जब भी मैं सोकर उठता हूँ,
सब कुछ भूल चुका होता हूँ.
उठकर अंगड़ाई लेकर जब ,
तुम्हे सोचकर मुस्काता हूँ ,
तब कुछ मुझको याद आता है
इक धक्का सा लग जाता है .
आँखें फिर से बुझ जाती हैं,
और मुस्कान चली जाती है। 
फिर रोता हूँ , चिल्लाता हूँ.
तुमको भूल नहीं पता हूँ.

क्या ये तुम्हारे साथ नहीं है ?
क्या मुझमें वो बात नहीं है ?
मैं ज्यादा जज्बाती हूँ या
तुममें कुछ जज़्बात नहीं है?

तुम्हें हंसाये , तुम्हें रुलाये ,
रह रहकर तुमको याद आये ,
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्या ?
इश्क ने तुमको नहीं छुआ क्या ?
क्यों मुझको तुमको पाना है ,
फिर से वह सब दोहराना है .

खुदा ! तुझे क्या नामुमकिन है ?
कर दे गर इतना मुमकिन है .
क्या तू ऐसा कर सकता है ,
उसको याद दिला सकता है .
कि मैं भूल नहीं पाया हूँ ,
अब तक मैं उसका साया हूँ .
और कभी भूल नहीं पाऊंगा ,
मरते दम तक दोहराऊंगा .


है उम्मीद तुम्हें है आना ,
पर क्यूँ इतनी देर लगाना .
जल्दी आओ देखो मैंने
छोड़ रखा है पीना खाना .
ज्यादा देर न तुम कर देना
नाउम्मीदी मत भर देना .
जीना मुश्किल हो जाएगा ,
गर देर से याद तुम्हें आएगा.

पता नहीं दिल की चलती है ,
या ये सोचना भी मेरी गलती है .