Wednesday 20 April 2011

जाओ क्या साथ निभाओगे ?

जाओ क्या साथ निभाओगे ?

                                 - मयंक शर्मा

जीवन पथ मेरा दुर्गम है ,
फिर काँटों से भी भरा हुआ .
मंजिल की कोई आस नहीं ,
कोई साधन भी है पास नहीं.
चलते चलते थक जाओगे
तब तुम क्या साथ निभाओगे ?

उल्लास का इसमें नाम नहीं,
यह कोई रास्ता आम नहीं.
यहाँ समय नहीं सुस्ताने को,
हसने को , मन बहलाने को .
नीरस कब तक चल पाओगे
और कब तक साथ निभाओगे??

ज़िम्मेदारी ने जकड़ा है,
यह बहुत कठिन पथ पकड़ा है.
स्वेच्छा से सफ़र नहीं होता है,
हर कदम पे एक समझौता है.
कितना मन को समझोगे ,
और कितना साथ निभाओगे ?

जाने कितनो ने छोड़ा है ,
कितनो ने ही मुंह मोड़ा है,
यहाँ गुजर  नहीं है वादों की,
यहाँ गरज है अटल इरादों की.
कैसे वह स्तर पाओगे ?
जाओ , क्या साथ निभाओगे ??

2 comments:

  1. bahut achchha hai , I remember the day when you wrote it.

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