Friday 1 July 2011

घातक तेरा धन्यवाद !

- मयंक शर्मा 

झटकों पर झटके झेल गया 
तू तूफानों से खेल गया |
कितने दुःख कितने ज़हर मिले 
तू सबको हृदय में उड़ेल गया |

तन मन धन समर में लगा दिया
पर अंतिम पड़ाव पर हारा |
चुप तनिक रहा फिर पुनः जुटा
यू यथार्थ तुने स्वीकारा |

तेरी यह प्रकृति विलक्षण है,
दुःख संकट तेरा भक्षण है |
क्षण से धिक गर दुःख हृदय पले,
यह वीरो का नहीं लक्षण है |
जब जब नियति ने घात किया,
तुने तत्क्षण प्रतिघात किया |
फिर कैसा अनोखा वार है यह ,
जिसने तुझपर आघात किया |

मत रो इसपर मत शोक मना,
आघात हुआ पर सबक मिला |
दुनिया में रह दुनिया का न हो ,
फिर कैसी ख़ुशी और कौन गिला |

जब वक़्त गुजर यह जाता है,
तो सबका घाव भर जाता है |
जो दो क्षण में ही घाव भरे,
वह हृदयवीर कहलाता है |

देह से वीर बहुतेरे हैं , 
हृदयावीरों की कम गिनती है |
तू हृदयवीर है गर्वित हो ,
यह मन की मन से गिनती है |

इस घात ने कुछ नहि नाश किया ,
केवल दौर्बल्य विनाश किया |
जो हृदय ज़रा सी चादर था ,
उसको फैला आकाश किया |

अब ख़त्म हुआ तेरा प्रमाद ,
गुंजित कर फिर से विजयनाद |
आघात तुझे लख धन्यवाद ,
घातक तुझको सौ साधुवाद |

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