अब मेरे भूखे रहने से तुमको फर्क नहीं पड़ता है, ,
और तुम्हारा प्राणांतक श्रम मुझको तनिक नहीं हड़ता है.
नहीं प्रशंसा अब एक दूजे से केवल उपलंभ का नाता,
तुमको मेरा मुझे तुम्हारा कोई नखरा रूप ना भाता.
मिलने जुलने बतलाने में नहीं रहा जब रस तब फिर क्या,
चंद बार के शारीरिक संबंधो को ही प्यार कहोगे ?
अब बतियाना खाना पूरी मिलने से कुछ मिटे न दूरी
कष्ट तुम्हारा मुझे हसाए तुम्हे रुचे मेरी मजबूरी
अब दिल नहीं तुम्हारा दुखता पीड़ा जब मुझको तडपाती
तुम पर जब संकट मंडराए तब मेरी फटती नहीं छाती
इसपर भी इक दूजे कि पीड़ा पर व्याकुलता का दिखावा,
व्यर्थ दिलासा, झूठी तसल्ली को ही क्या आधार कहोगे ?
इक दूजे हित जो किया धरा उसकी ही चर्चा अब आये
जो प्रेम हेतु थे कष्ट सहे वह अब उपकार की उपमा पाए
मेरा उपकार बड़ा, तेरा छोटा तू परम कृतघ्न रहा,
तुमने न कोई एहसान किया, अब यही वार्तालाप रहा.
क्या बतलाने जतलाने ही को , इक दूजे हित रोए थे ?
क्या आक्षेपों से भरे हुए , इस विवाह को साहचर्य कहोगे?
मिलने जुलने बतलाने में , नहीं रहा जब रस तब फिर क्या,