खुद में अंतर देखता हूँ कुछ दिनों से ,
तोलती है आत्मा व्यवहार मेरा ,
हर किसी के संग और फिर तुम्हारे संग,
और आता गुप्त यह सन्देश मन से ,
या तो दोहरा हो गया व्यवहार मेरा
या ज्यादा खास से कुछ हो गए तुम !
दुसरो को भूल जाता याद करना ,
फ़ोन करना मेल करना या कि मिलना .
दिल पे रहता हर घडी कब्ज़ा तुम्हारा ,
पासवर्ड भी अब तुम्हारे नाम पर और जन्मदिन पर,
देखकर होता मुझे अचरज कदाचित ,
समझ न आये की मैं बदला हुआ हूँ ,
या अलग अब भीड़ से कुछ हो गए तुम ?
दूसरों की उपेक्षा से क्रोध जनता ,
उपेक्षित हो तुमसे दारुण दुःख पनपता .
कई दिन तक चले उलझन , जब तुड़े नाता किसी से,
तुमसे पल भर की भी उलझन क्यों ये दिल सुलझाना चाहे ?
प्रेम भर यह नहीं केवल , प्रेम तो प्रियजनों से भी .
आत्मीयों से घटा व्यवहार मेरा ,
या कि उनसे कहीं ऊपर चढ़ गए तुम ?
तुम बने अब इक ज़रूरी सी ज़रूरत ,
वायु , जल, भोजन, बसेरे से भी बढ़कर .
याद भर मन कार्य से मेरा हटाती,
तुम हो खुश तो कोई भी चिंता न खाती .
कहो क्या मैं निष्क्रिय अब हो चला हूँ ,
या कि कर्मठता पे भारी पड़ गए तुम ?
कोई बतलाये कि मैं बदला हुआ हूँ ,
या ज्यादा खास से कुछ हो गए तुम ?
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