ख्वाबो में है मेरे भी उन आसमानो की बुलंदी,
पर अभी निश्चित नहीं कब उड़ने का आगाज़ होगा.
कई वक्रो , कई मोड़ो बाद शायद सफलता है ,
हर विपद पर मन को समझाता ये अंतिम विफलता है.
रास्तो के बदलते ही शिखर पर हम जा लगेंगे.
पर अभी निश्चित नहीं कब मुड़ने का आगाज़ होगा.
प्रयासो की विफलता ने घाव गहरे कर दिए हैं.
कुछ से थी मरहम की आशा , ग्रहण पर सबने दिए हैं.
सफलता के नीर से ही व्रण ये सारे स्वच्छ होंगे,
पर नहीं यह जानता कब धुलने का आगाज़ होगा.
अवसरो की प्रतीक्षा में, धैर्य का भी धैर्य टूटा ,
परम सद्व्यवहार पर भी नेहियों का नेह रूठा .
सभी रूठों को शुभा देवी तुम्ही अब मनाओगी .
जब उठूंगा धूल से और मेरा भी सम्राज होगा .
है विधी जिद्दी भयंकर , कष्ट देते यह न थकता ,
कोई इसको दे चुनौती , यह तनिक भी सह न सकता .
मगर शायद गलत इसने मुझे स्पर्धी चुना है,
मेरी बेशर्मी का इसको , शायद नहीं अंदाज़ होगा .
ख्वाबो में है मेरे भी उन आसमानों की बुलंदी,
पर अभी निश्चित नहीं कब उड़ने का आगाज़ होगा !
insha allah ! aaghaz zarur hoga.....
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