Thursday 10 September 2015

याराना


 वह भी क्या समय निराला था ,
 तकलीफ ने डेरा डाला था।
जब ठोकर उठा पटकती थी ,
तब एक दूजे को सम्हाला था।

सब एक बिस्तर पर सोते थे,
संग खाते , हँसते, रोते थे।
अरमानों में सबके अम्बर था ,
फिर पंख भले ही छोटे थे।

गिरने न किसी को कभी दिया ,
सुख  साथ जिया , ग़म संग पिया।
हिम्मत से अपनी आजिज़ आ ,
फिर एक दिन दुःख  भी निकल लिया।

सावन आये और  चले गए ,
प्रेमी भी  मिले और छूट गए।
कुछ यार तभी भी संग रहे,
जब दिल  के भी नाते टूट गए।

जो बदतर के भी गवाह रहे ,
और बेहतर के भी साखी हैं।
उनसे संकट में साहस है ,
और  दर्द में हिम्मत बाकी है।

हम साथ रहें  या अलग रहें ,
हम पास रहें या दूर रहें।
रोटी खाएं या बिरयानी,
मुफलिसी सहें , मशहूर रहें।

तुम हो तो न दिल भारी होगा ,
तुम हो तो न दर्द सताएगा।
तुम जहाँ रहो मिलते रहना ,
बाकी सब देखा जाएगा।

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