Monday 30 April 2012

श्रमिक दिवस पर यों ही ..........


श्रमिक दिवस पर यों  ही ..........


कई अन्य महत्वपूर्ण या कथित महत्वपूर्ण तिथियों की भांति भारतवर्ष श्रमिक दिवस भी औपचारिकता पूर्ति मात्र  है. शायद मैंने ज्यादा कह दिया , यह वास्तव में औपचारिकता भी नहीं है. वाजिब भी है , खालिस वाजिब . १ मई का इतिहास उठाकर देख लीजिए , कुछ १८८० के लगभग अमेरिका में मजदूरो ने मांगे उठाई , संघर्ष किया और छह सात साल बाद उनमे से कुछ को वहां की सरकार  ने स्वीकृत किया और मजदूर दिवस का अविर्भाव हुआ .
        
भारतवर्ष तब गुलाम था , न जनता स्वतंत्र थी न मीडिया . स्वतन्त्र होने पर अपने ही लोग शासक  बन बैठे .मजदूर और आम आदमी पर अपने लोग अत्याचार क्यों करते भला और अगर किसी   को यह अत्याचार लगे तो यह उसका दोष है , उसकी समझ का दोष है. १ मई का औचित्य अगर मैंने कही पाया तो वह बस जनरल नालेज की किताबो में या सरकारी नौकरी की परीक्षा में १ अंक वाले बहुविकल्पीय प्रश्नों में .

 भारतीय जनता का एक बड़ा भाग श्रमिक है , पर मजदूरों की एकता, संघर्ष और उनकी मांगो के आगे प्रशासन  को झुकते अगर देखा है तो  केवल बॉलीवुड की फिल्मो में.  अमेरिका में मजदूरों ने अपने २४ घंटो के विभाजन को मुद्दा बना आन्दोलन किया - ८ घंटे काम , ८ घंटे मनोरंजन और ८ घंटे आराम . हमारे यहाँ ऐसा मजदूर मिलना मुश्किल है ( गौर तलब है की यहाँ सिक्यूरिटी गार्ड भी १२ घंटे काम करते हैं ) . फिर भी मजदूर विरोध नहीं करता .ऐसा नहीं कि हमारे संविधान में मजदूरों के अधिकार वर्णित नहीं है , पर मजदूर क्या करे ? उसके बच्चों ने कॉन्वेंट की जनरल नालेज की बुक नहीं पढ़ी , न उसने सरकारी नौकरी की प्रवेश परीक्षा दी और न ही हमारे जागरूक समाज में वह यह जागरूकता सीख पाया . १४ वर्ष तक के बच्चे से काम कराना जुर्म है और १८ साल तक के बच्चे से उद्योग कार्य लेना जुर्म है , ऐसा श्रमिक क़ानून में लिखा है , पर बच्चे की आयु का निर्धारण कैसे हो और जब बच्चे के माँ बाप ही उससे काम करवाएं तो बाल श्रम क़ानून क्या करे  ?
                              बर्तन धोते बच्चे और घरो की सफाई करती गर्भवती स्त्रियाँ तक  हमारे देश में मजदूर दिवस कि प्रासंगिकता का सुबूत तो हैं ही , साथ ही जगतगुरु भारतवर्ष के सामाजिक सौहार्द का नमूना भी हैं.

No comments:

Post a Comment