जब भी मैं सोकर उठता हूँ,
सब कुछ भूल चुका होता हूँ.
उठकर अंगड़ाई लेकर जब ,
तुम्हे सोचकर मुस्काता हूँ ,
तब कुछ मुझको याद आता है
इक धक्का सा लग जाता है .
आँखें फिर से बुझ जाती हैं,
और मुस्कान चली जाती है।
फिर रोता हूँ , चिल्लाता हूँ.
तुमको भूल नहीं पता हूँ.
क्या ये तुम्हारे साथ नहीं है ?
क्या मुझमें वो बात नहीं है ?
मैं ज्यादा जज्बाती हूँ या
तुममें कुछ जज़्बात नहीं है?
तुम्हें हंसाये , तुम्हें रुलाये ,
रह रहकर तुमको याद आये ,
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्या ?
इश्क ने तुमको नहीं छुआ क्या ?
क्यों मुझको तुमको पाना है ,
फिर से वह सब दोहराना है .

कर दे गर इतना मुमकिन है .
क्या तू ऐसा कर सकता है ,
उसको याद दिला सकता है .
कि मैं भूल नहीं पाया हूँ ,
अब तक मैं उसका साया हूँ .
और कभी भूल नहीं पाऊंगा ,
मरते दम तक दोहराऊंगा .
है उम्मीद तुम्हें है आना ,
पर क्यूँ इतनी देर लगाना .
जल्दी आओ देखो मैंने
छोड़ रखा है पीना खाना .
ज्यादा देर न तुम कर देना
नाउम्मीदी मत भर देना .
जीना मुश्किल हो जाएगा ,
गर देर से याद तुम्हें आएगा.
पता नहीं दिल की चलती है ,
या ये सोचना भी मेरी गलती है .
main kitna bhi bhoolon bhatkon ya bharmaun
ReplyDeletehai ek kahi par manjil mujhe bulati hai
kitne bhi mere paav pade unche niche
pratipal wo mere paas chali hi aati hai......
really painful
ReplyDeleteIts a real bitter truth !
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